मसाला चाय

मसाला चाय
मसाला चाय

” मसाला चाय “ , उम्दा कहानियों की एक श्रृंखला। कहानियाँ आपके दिल को छुएंगी और हो सकता है कही किसी कहानी में आपको किसी छूटे हुए एहसास, पुराने किस्से या आपके पुराने दिन की याद आ जाये।  दिव्य प्रकाश जी की एक खास बात है कि वो जब भी लिखते है किरदारों में जान डाल देते है। सबसे पहले मैंने दिव्य जी की मुसाफिर कैफ़े पढ़ी थी। उनकी लेखनशैली मुझे इतनी पसंद आयी कि मैंने अक्टूबर जंक्शन भी मँगा ली। अक्टूबर जंक्शन किताब भी मुझे अच्छी लगी। बस फिर क्या था , वो कहते है न इंसान की ख्वाहिश कभी कम नहीं होती बल्कि बढ़ती ही जाती है। मेरी भी ख्वाहिश बढ़ी ” मसाला चाय ” पढ़ने की।

पुस्तक की बात करें तो ये मसाला चाय शीर्षक को सत्यतता प्रदान कर रही है। कहानियाँ उतनी ही उम्दा है जितनी लेखक की लेखनी और लेखनशैली। ग्यारह कहानियों के संग्रह वाली इस किताब को खत्म करने के बाद बस यही ख्याल आता है कि और कहानियाँ क्यूँ नहीं है।

इस किताब का शीर्षक अपने आप में एक आकर्षण है। हमारे जीवन में चाय का योगदान वैसे भी बहुत खास होता है। सुबह से लेकर शाम तक की दिनचर्या , बॉस को गाली , राजनीति से जुड़ी हर गहरी बातें , विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम का विवरण , अफेयर्स , छोटे – मोटे झगड़े , सब चाय की टपरी पर शुरू किये जाते है और निपटा भी लिए जाते है। और ऐसे कभी चाय की चुस्कियों के बीच मसाला चाय भी पढ़ी जाये तो ऐसी ही तमाम बातें , हमारी कॉलेज लाइफ , लव लाइफ , जॉब लाइफ , न जाने कौन – कौन सी लाइफ याद आ जाएगी। बस इन्हीं में से कुछ हिस्सों को दिव्य जी ने कहानी के रूप में उतार दिया है।

इसीलिए जब आप इस किताब को पढ़ने बैठेंगे तो बेशक आपको अपने कॉलेज के पुराने दिन याद आएंगे। कैसे आप दोस्तों के साथ तफरी काटने में पूरा – पूरा दिन ख़तम कर देते थे। कैंटीन में बैठे बैठे चाय और समोसे के आर्डर के बीच में गपशप किया करते थे। ये सब कुछ ऐसे लगेगा जैसे अरे ये सब कल ही की तो बात है , कहाँ चले गए वो पुराने दिन।  

पुस्तक की भाषा-शैली हिंगलिश है और बहुत ही आसान शब्दों में लिखी गयी है। युवा वर्ग जिस तरह के हिंदी साहित्य का इंतज़ार करता है वो इंतज़ार इस पुस्तक पर आकर ख़तम हो सकती है। हालाँकि पारम्परिक लोगों को हो सकता है कि कम पसंद आये। 

पुस्तक की कुछ दिलचस्प पंक्तियाँ :-

    ” फलाना इंजीनियरिंग कॉलेज में प्यार तक की दूरी तो कई जोड़े तय कर लेते है लेकिन ये सच्चे प्यार वाला level आते – आते फाइनल ईयर आ जाता है। इसीलिए इंजीनियरिंग में प्यार करना एक बात है और सच्चा प्यार करना दूसरी बात। “

     कहानी Bed Tea से – ” रोज सुबह उठते ही लगता है कि सुबह कितनी जल्दी हो गई। अगर रात सोकर न काटी जाये तब समझ आता है कि रोज सुबह कितनी मुश्किल से होती है। ” 

      कहानी Time से – ” Life is not about distance , it’s about direction .”

आपको चाहे तो इस किताब की समीक्षा यूट्यूब पर भी देख सकते है।

मसाला चाय किताब की समीक्षा

लेखक के बारे में

दिव्य प्रकाश दुबे का जन्म 8 मई 1982 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उन्होंने College of Engineering Roorkee से Computer Science Engineering में डिग्री लेने के बाद , Symbiosis Institute of Business Management, Pune से MBA किया। उन्होंने MBA के बाद कुछ समय तक जॉब भी किया लेकिन , उसके बाद वो पूरे तरीके से लेखन में आ गए। दिव्य जी ‘ नयी वाली हिंदी ‘ विधा में अपनी किताबें लिखते है। 

Divya Prakash Dubey

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