बागी बलिया पुस्तक समीक्षा

बागी बलिया

बागी बलिया

बागी बलिया कहानी पूर्वांचल की एक जगह बलिया पर आधारित है। और इस किताब को लिखा है सत्य व्यास जी ने। किताब को लिखने में आंचलिक भाषाशैली का प्रयोग किया गया है । और यही भाषा शैली इस कहानी में तड़के की तरह काम करती है।किताब का शीर्षक के साथ साथ कवर भी काफी दिलचस्प है। कहानी दो लोगों संजय और रफीक की है फिर भी इसे पूरा एक तीसरा किरदार करता है और वह है डॉक  साहब। वैसे तो डॉक साहब को लोग पागल कहते हैं और उनकी ज्यादातर बातें लोगों के सिर के ऊपर से जाती हैं फिर भी यह वही डॉक  साहब है जिनकी वजह से संजय और रफीक राजनीति में आगे बढ़ पाए हैं।
 
तो कहानी यह है कि संजय और रफीक लंगोटिया यार है जो एक दूसरे को नाम से नहीं बल्कि अंदाज से संबोधित करते हैं, रफीक, संजय को नेता कहता है और संजय, रफीक को मियां। संजय और रफीक की एकदम पक्की दोस्ती है।इन दोनों की दोस्ती के बीच कभी मजहब नहीं आया। यहाँ तक कि संजय की बहन ज्योति , संजय के साथ – साथ रफीक को भी राखी बांधती है। कॉलेज दोनों का एक ही है यहां और दोनों ही छात्र राजनीति में सक्रिय भी है। कहानी कॉलेज में होने वाले चुनाव के इर्द – गिर्द ही घूमती है।
 
इस बार संजय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाला होता है और लड़ना ही नहीं बल्कि से जितना भी चाहता है पर कॉलेज में चुन्नू भैया ही ऐसे इंसान हैं जिनका आशीर्वाद पिछले 10 सालों से जिसके सर पर रहा है वही चुनाव जीता है। और इस बार उनका आशीर्वाद संजय के सर पर नहीं बल्कि उसके विपक्षी अनुपम राय की तरफ है। बस यहीं से शुरू होता है राजनीति का खेल और सुना है राजनीति न आगे देखती है, न पीछे, न रिश्ते, न समाज ।छल , धोखा राजनीति में बड़ी आम सी बात लगती है। इस कहानी में भी कुछ ऐसी घटनाएं हुई है जिन पर आपका दिल भर आएगा।राजनीति करना और राज करना दो अलग-अलग चीजें हैं और यह बात जिस दिन संजय को समझ आ जाता है उसी दिन से राजनीति का पलड़ा उसकी तरफ भारी हो जाता है।
 
बागी बलिया की कहानी थोड़ी फिल्मी जरूर है पर अच्छी है और इसमें सबसे बड़ा हाथ है व्यास जी के लेखन कला का। लिखावट ऐसी कि आपको अपनापन सा लगे। मुहावरे ऐसे की आपको हंसी भी आए और अर्थपूर्ण भी लगे। और इसमें जो तीसरे किरदार डॉक साहब है असल में वह इस कहानी की बहुत महत्वपूर्ण कड़ी है। व्यास जी ने कहानी की शुरुआत में है कहा है “इतिहास वह बहरूपिया है जिसके पास करतब कम है। वह वक्त स्थान और चोले बदलकर करतब दोहराता रहता है।” और डॉक साहब वह पहले इंसान थे जिन्होंने इस बार बहुरूपिये को सबसे पहले पहचाना। कुल मिलाकर ये किताब आपको पढ़नी चाहिए और एक बार जो पढ़ने बैठे तो आपको मजा आएगा और मजा आएगा तो किताब आप खत्म करके ही मानेंगे।
 
बागी बलिया के अलावा सत्य व्यास जी की कुछ और किताबें भी है जैसे बनारस टॉकीज , दिल्ली दरबार , 84 (चौरासी), उफ्फ कोलकाता। उफ्फ कोलकाता को छोड़ कर बाकी किताबें पढ़ी है मैंने व्यास जी की। और अगर आप नहीं पढ़े है तो आपको मैंने सुझाव देती हूँ कि कुछ किताबें तो इनमे से जरूर पढ़ें , जैसे बनारस टॉकीज , चौरासी। बनारस टॉकीज तो पढ़ते समय आप पक्का हसेंगे। बड़ी मजेदार किताब है। बाबा , दादा और जयवर्धन की बातों पर आप पक्का ठहाका लगाएंगे।और इसी बहाने ही सही , बैठे – बैठे ही बनारस के थोड़े चक्कर लगा लेंगे। चौरासी थोड़ी सी सेंसिटिव किताब है , लेकिन बहुत खूबसूरती से लिखा गया है। 
 
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