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Days at the Morisaki Bookshop Review in Hindi

किताब – Days at the Morisaki Bookshop

लेखक – Satoshi Yagisawa

अनुवादक – Eric Ozawa

प्रकाशक – Manilla Press

पृष्ठ – 169

पुरस्कार – Chiyoda Literature Prize

इस किताब के टाइटल (“Days at the Morisaki Bookshop”) ने और इसके कवर पर बानी किताबों की दुकान ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित किया था। मुझे ऐसा लगा था कि कोई किताब की दुकान होगी , वहाँ पर बैठकर मुख्य किरदार का लोगों को लेकर कुछ observation होगा , कुछ बढ़िया बढ़िया कहानियाँ आएँगी। किताब के कवर के अंदर की तरफ थोड़ा सा लिखा गया था कि ये किताब है किस बारे में और ये पढ़ कर मुझे और मन हुआ इस किताब को पढ़ने का।

Days at the Morisaki Bookshop
Days at the Morisaki Bookshop

Days at the Morisaki Bookshop की कहानी

अब आते हैं “Days at the Morisaki Bookshop” की कहानी पर ।इस किताब के दो भाग है और किताब की मुख्य किरदार है Takako .

भाग 1

भाग 1 की शुरुआत कुछ इस तरह है कि , Takako का boyfriend , उसके ऊपर बम फोड़ता है ये बता कर कि वो शादी कर रहा है और जिससे कर रहा है वो Takako नहीं बल्कि कोई और है। Takako इसके बाद से काफी ज्यादा परेशान होती है और चूँकि दोनों लोग एक ही जगह काम कर रहे होते है तो Takako से ये सब और नहीं handle हो रहा था। इसलिए Takako ने अपनी नौकरी छोड़ दी।

कुछ समय बाद Takako के अंकल Satoru का कॉल आता है । यहाँ पर Satoru के बारे में जानना भी जरूरी क्योंकि Satoru भी इस किताब के एक अहम किरदार है। Satoru की एक bookshop है जिसका नाम है “Days at the Morisaki Bookshop” और ये किताब की दुकान 3 पीढ़ी से चलायी जा रही थी। अब Takako के uncle Satoru इसको आगे बढ़ा रहे थे।Takako को , अंकल Satoru द्वारा ऑफर दिया जाता है कि, अगर अभी उसे काम करने का मन न हो तो वो बुकशॉप के ऊपर बने कमरे में रह सकती है जो कि फ्री है और शॉप में थोड़ी मदद भी कर सकती है।

हालाँकि शुरू शुरू में Takako को ये सही नहीं लगता है और Takako को किताबें पढ़ने में भी दिलचस्पी नहीं होती है , लेकिन जैसा कि वो अपनी बचत पर ज्यादा दिन रह नहीं सकती है तो वो बुकशॉप पर चली जाती है। बाकी भाग 1 की कहानी में थोड़ा बहुत बुकशॉप , Takako की reading journey के बारे में , वहाँ पर साल में लगने वाले सेकंड हैंड पुस्तक मेला के बारे में और कुछ रेगुलर ग्राहकों के बारे में बताया गया है ।अगर आप सेकंड हैंड किताब की दुकानों में घूमे है तो आपको Morisaki Bookshop का structure पढ़ कर जरूर उसकी याद आएगी। अगर आप दिल्ली की बुक मार्केट घूमे है तो आप इस पार्ट को relate कर पाएंगे।

भाग 2

किताब के भाग 2 में ज्यादातर अंकल Satoru और उनकी जिंदगी के बारे में है। अंकल Satoru की पत्नी , 5 साल पहले उन्हें छोड़ कर कहीं चली गयी होती होती है और वो अचानक से वापस आ जाती है। उनकी वापसी की वजह न अंकल Satoru की समझ में आती है और न ही Takako के और किताब के इस भाग में पता चलता है कि उनके जाने और वापस आने के पीछे की क्या वजह थी। इस भाग में Takako का एक लड़के के साथ थोड़ा रोमांटिक एंगल दिखने की कोशिश भी की गयी है। पर इस भाग में बुकशॉप के बारे में कुछ खास नहीं लिखा गया है।

Days at the Morisaki Bookshop के बारे में मेरे विचार

भाग 1 की बात करें तो  भाग 1 पढ़ कर मुझे काफी अच्छा लगा। काफी smooth और soothing था। कहॉं Takako को पढ़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और कहाँ वो अपने साथ किताबें लेकर घूमने लगी थी। Takako , introvert होती है , खुद को कमरे तक सीमित रखती है , सोती रहती है पर उसका जो transition दिखाया गया है कि , कैसे धीरे धीरे वो कॉफ़ी शॉप पर जाना शुरू करती है , किताबें पढ़ना शुरू करती है , लोगों से बातचीत करना शुरू करती है , ये transition मुझे खूबसूरत लगा। चूँकि मुझे खुद किताबें पढ़ना बहुत पसंद है , और कोई किरदार जब किताब पढता है तो अच्छा सा लगता है। book festival वाला भाग पढ़ कर काफी अच्छा लगा।

भाग 2 में चीजें कई सारे अलग अलग angles पर लिखी गयी है जैसे कि Satoru और उनकी पत्नी का रिश्ता , Takako और Wada की दोस्ती , Takako और Momoko (Satoru की patni) की ट्रिप । पर मुझे ऐसा लगा कि इतना सब होने के बावजूद भी कुछ missing था। शायद मुझे ये सब कुछ थोड़े और गहराई में चाहिए था। और फिर इस भाग में Morisaki Bookshop के बारे में लगभग न के बराबर है ।

कुल मिलाकर अगर देखा जाये तो “Days at the Morisaki Bookshop” किताब एक बार पढ़ी जा सकती है। काफी लाइट रीड है। किताब कुल मिलकर 169 पन्नों की है लेकिन उसमें भी आखिर के कुछ पन्ने किसी और किताब के बारे में है , तो देखा जाये तो किताब 147 पन्नों पर ही ख़तम हो जाती है। भाषा शैली अंग्रेजी है। पर साधारण वाली अंग्रेजी है। अगर आप नया नया पढ़ना शुरू किये हो या फिर कुछ light पढ़ने का सोच रहे हो तो आपकी अगली किताब “Days at the Morisaki Bookshop” हो सकती है।

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Days at the Morisaki Bookshop की कुछ पंक्तियाँ

People’s impressions really aren’t very reliable, are they ?

In the end, it doesn’t matter if you’re related by blood or if you spend years together in the same class at school or same office; unless you really come face to face, you never really know someone at all.

Too Good to be True किताब की समीक्षा पढ़ें : Too Good To Be True Book Review in Hindi

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