The Bookishmate

Kashi ka Assi Book Review | बनारस की आत्मा को छूती 5 कहानियाँ

Kashi Ka Assi

किताब – काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi)
लेखक – काशीनाथ सिंह
प्रकाशक – राजकमल पेपरबैक्स
पृष्ठ – 172

यह किताब है उस शहर की जिसका इश्तहार है “जो मजा बनारस में; न पेरिस में न फारस में।” यह इश्तहार दीवारों पर नहीं, लोगों की आंखों में और ललाटों पर लिखा रहता है। और कहानियां है उस घाट की जो असल मायनों में घाटों का राजा है यानी अस्सी घाट। 

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi), काशीनाथ सिंह जी द्वारा रचित एक बहुचर्चित उपन्यास  है। एक ऐसा उपन्यास जो बच्चों और बूढ़ों के लिए नहीं है। काशी का अस्सी ऐसे वर्ग के लिए है जो वयस्क है। जिसने भी काशी ( या आज के वयस्कों के लिए वाराणसी ) का नाम सुना होगा उसने अस्सी का नाम जरूर सुना होगा। काशीनाथ सिंह जी भी अस्सी के बगैर उतने ही अधूरे है जितना अस्सी के बगैर काशी। और अस्सी मोहल्ला , उसकी तो बात ही मत कीजिये , उसकी तो जान है अस्सी। काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) पर आधारित एक फिल्म भी आयी थी “मोहल्ला अस्सी” के नाम से।

काशी का अस्सी पाँच ऐसी कहानियों का संग्रह जो अस्सी के है, अस्सी में रचे बसे लोगों के है। कहानी के कुछ पात्र है जो हर कहानी में आपको मिलेंगे और इन सब कहानियों के प्रत्यक्ष गवाह रहे है काशीनाथ सिंह जी। काशी का अस्सी किताब की हर कहानी का आधार रहा है अस्सी घाट। 
 
अस्सी के बारे में कहूँ तो 
” रागों, रंगों, और रेखाओं और चिड़ियों की चह-चह का अद्भुत कोलाज है यह घाट! सुबह-शाम यहाँ पेंसिल, ब्रश, और कैनवास लिए चित्रकार भी बैठे मिलेंगे, कैमरा लटकाए छायाकार भी, रियाज मारते गायक-वादक भी, पुजैया के गीत गाती औरतें भी, धुनी  रमाए जोगी भी ! बाकी तो मल्लाह है, अखाड़िये पहलवान है, साधू-सन्यासी है, कीर्तनियाँ है, भिखमंगे है…..”
Kashi Ka Assi

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) की कहानियाँ

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi ) की कहानियों की बात करें तो वो बीसवीं सदी की है और उसी भाषा शैली में लिखी गयी है जो अस्सी की भाषा है। लेखक जी ने भाषा के साथ कोई हेर-फेर नहीं किया है और पाठकों को पहले ही इस बारे में बता दिया है और चेता भी दिया है कि “अस्सी और भाषा के बीच ननद-भौजाई और साली-बहनोई का रिश्ता है। जो भाषा में गन्दगी, गाली, अश्लीलता, और जाने क्या क्या देखते है वो कृपया इसे पढ़ कर अपना दिल न दुखाएँ। ” 
 
भाषा के साथ – साथ काशीनाथ जी ने पात्रों के साथ भी कोई हेर फेर नहीं किया है। हर कहानी में स्थान भी वही है , पात्र भी वही है , अपने वास्तविक नामों के साथ।पात्रों के मुँह से गालियाँ अपनी ही तर्ज पर निकलती है फिर चाहे वो गुरु हो या चेला या कोई आम इंसान। इंसानी पात्रों के अलावा जिसकी मुख्य भूमिका रही है वो है “पप्पू की दुकान।” चाय पीना हो या भंग, बतकही करना हो या भजन, सरकार बनानी हो या गिरानी , आप शौक से जाइये पप्पू की दुकान पर और आपको सब मिलेगा वहाँ। 
 
काशी का अस्सी में एक और मुद्दा बड़े रोमांचक तरीके से पेश किया गया है और वह है “राजनीति।” कोई पप्पू की दुकान पर जाये उसे वहाँ पर अपने पक्ष और विपक्ष, दोनों पार्टी के लोग मिल जाएँगे और विपक्ष भी ऐसा नहीं जो आपको सहज तरीके से छोड़ देगा। विपक्ष हमेशा कटाक्ष करेगा, तर्क, वितर्क, गालियों के साथ।
 
राजनीति पर ही हो रही बात का एक अंश लिखती हूँ यहाँ पर –
एक सज्जन से पूछा गया कि “आदर्श और सिद्धांत की क्या राजनीति होती है ?”
 
जवाब में सज्जन ने कहा
 
ऐसी कोई राजनीति नहीं होती , जो ऐसी राजनीति करते है, वे दांत निपोरते और हाथ पसारते हुए मर जाते है। आदर्श बालपोथी की चीज है। वाद – विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने की और पुरस्कार जीतने की। आदर्श की चिंता की होती कृष्ण ने तो अर्जुन भी मारा जाता और भीम भी ! पांडव साफ हो गए होते ! आदर्श तो है पतिव्रता का लेकिन देखो तो सम्भोग हर किसी से ! कोई ऐसी देवी है जिसका सम्बन्ध पति के सिवा किसी और से न रहा हो ? आदर्श उच्चतम रखो लेकिन जियों निम्नतम – यही परम्परा रही है अपनी ! सिद्धांत सोने का गहना है ! रोज रोज पहनने की चीज नहीं ! शादी – ब्याह तीज – त्यौहार में पहन लिया बस ! सिद्धांत की बात साल में एक – आध बार कर ली , कर ली ; बाकी अपनी पॉलिटिक्स करो।
बनारस और अस्सी दोनों से मुझे बहुत लगाव है। हालाँकि मेरा रहना सहना उस क्षेत्र का नहीं है लेकिन इस लगाव के चलते , काशी का अस्सी पढ़ने में मेरी बड़ी दिलचस्पी थी। जिस जगह को हम आज देख रहे है, जी रहे है , वो जगह सालों पहले कैसी थी। ग्लोबलाइजेशन का असर अस्सी पर किस तरह हुआ। लोगों को बोली भाषा , रहन सहन में कैसा अंतर आया। जब आप किसी जगह से जुड़े हो तो उस जगह के बारे में ये सब जानने की बड़ी इच्छा होती है। काशी का अस्सी को पढ़ना , मेरे लिए अस्सी को और करीब से देखना था।
 
कहानियाँ बहुत मजेदार और रोमांचक तरीके से लिखी गयी। सामाजिक जीवन और राजनीतिक जीवन पर बहुत गहरा कटाक्ष हुआ है।मुझे इस किताब को पढ़कर मजा आया। अगर आप राजनीति में जरा भी रूचि रखते है तो ये किताब बिलकुल आपके लिए है और उन सभी लोगो के लिए भी काशी का अस्सी (Kashi ka Assi) है जो बनारस और अस्सी को जानते है, जिन्हे वहाँ की भाषा और घाट से लगाव हो , और जो भी उस दौर के अस्सी को महसूस करना चाहते है। 

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) की कुछ खास बातें –

  • अस्सी घाट 
  • भाषा शैली 
  • पप्पू की दुकान और उसकी मेज पर बनती बिगड़ती सरकार
  • अस्सी के कुछ रिवाज 

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) क्यों पढ़ें –

  • अगर आपको राजनीति में जरा भी रूचि हो 
  • अस्सी को जानने और समझने के लिए 
  •  कुछ बदलावों के दौर समझने के लिए 

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) क्यों न पढ़ें –

  • अगर आपको गालियों से परहेज हो 
  • अगर आपको राजनीति बिलकुल ही अरुचिकर लगती हो 

रेटिंग – 4/5

काशी का अस्सी (Kashi Ka Assi) किताब खरीदें

Exit mobile version