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बाहुबली पुस्तक समीक्षा

बाहुबली

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बाहुबली किताब मुझे तब मिली जब मैं हजरतगंज की सड़कों पर एक दुकान में घुसे हिंदी की किताबें ढूंढ रही थी। अचानक ही मेरी नजर इसके शीर्षक पर पड़ी,”बाहुबली”। बाहुबली से तुरंत मेरे दिमाग में बाहुबली फिल्म घूमने लगी।माहिष्मती साम्राज्य , कटप्पा , शिवगामी इन सबके चित्र मेरी आँखों के सामने घूमने लगे। जब फिल्म आयी थी , पूरी धूम मची हुई थी। रिकॉर्ड तोड़े जा रही थी बाहुबली। वास्तव में फिल्म बहुत ही रोमांचक और प्रभावशाली साबित हुई थी। मैंने तुरंत इस किताब को खरीद लिया, हालांकि उस वक्त मैं कोई और किताब पढ़ रही थी लेकिन मैंने मिलते ही इस किताब को पढ़ना पसंद किया।

समीक्षा की बात करें तो अगर आप बाहुबली किताब को फिल्म को ध्यान में रखते हुए पढ़ेंगे तो इस किताब की कहानी आपको बहुत साधारण सी लगेगी और आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरती नहीं मालूम होगी।इसलिए मेरी राय में आप जब ये किताब पढ़ने बैठे तो फिल्म को खुद से बहुत दूर कर के बैठे , नहीं तो आपका मजा किरकिरा हो जायेगा। किरदारों की बात करें तो किताब में उनकी मात्रा बहुत अधिक और हर किरदार का अपना अलग-अलग महत्व है। हो सकता है आपको उन्हें समझने में थोड़ा वक्त लगे।

शिवगामी जिसने 5 साल की उम्र में अपने पिता का मृत्युदंड को प्राप्त करते हुए देखा था वो भी राजद्रोह के मामले में तभी से उसके मन में माहिष्मती साम्राज्य से बदला लेने की ज्वाला था धधक रही थी । शिवगामी के पास उसके पिता द्वारा छोड़ी एक किताब है , जो किसी प्राचीन भाषा में लिखी गयी है। शिवगामी को लगता है कि ये किताब उसकी कुछ मदद कर सकती है।

वैतालिक साम्राज्य जिन्हें लगता है उनकी पूजनीय गौरी पर्वत को उनसे माहिष्मती साम्राज्य ने छीन लिया है और उनका दोहन करके दिन प्रतिदिन फल फूल रहा है।गौरी पर्वत से एक खास किस्म का पत्थर मिलता है , और जिसका इस्तेमाल करके गौरिधूल प्राप्त किया जाता है। गौरिधूल एक धातु है जिससे हथियार को बनाया जाता है और ये हथियार ऐसे कि हथियार चलाने की जीत लगभग तय है। इसी वजह से वैतलिक साम्राज्य माहिष्मती से युद्ध करके उसे वापस जीतना चाहते हैं।

महाराजा सोमदेव माहिष्मती साम्राज्य के सम्राट है और उनके पुत्र बिज्जल और महादेव है , स्कन्ददास माहिष्मती साम्राज्य के उप प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने भूख और अकाल अपने समय में देखा था। अनाथालय की प्रमुख रेवम्मा, किन्नर बृहन्नाला और वेश्या कलिका इनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। कटप्पा और शिवप्पा , माहिष्मती परिवार के दास है। 

अब लग रहा होगा न अरे , फिल्म में तो ऐसा नहीं था।दरअसल फिल्म जहाँ से शुरू होती है , ये किताब उससे भी पहले की कहानी के बारे में है। ये आनंद नीलकण्ठन द्वारा लिखी जाने वाली एक सीरीज (बाहुबली : आरंभ से पूर्व) की पहली किताब है। इस सीरीज में दो और किताबें है , चतुरंग (दूसरी किताब) और क्वीन ऑफ़ माहिष्मती (तीसरी किताब)।

खैर आते है इस पहले खंड की कहानी पर, पूरी कहानी गौरी पर्वत, उससे निकलने वाले पत्थर और उन से बनने वाली गौरिधूल पर टिकी हुई है। कहानी अच्छी है पर महान नहीं जितनी महान भी हो सकती थी। माहिष्मती साम्राज्य में हर किसी को माघममाघ उत्सव के दिन का इंतजार है ।सभी को उसी दिन अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी है।

दिन एक, उस दिन की ताक में लोग अनेक और सबके लक्ष्य अलग अलग। अब उनका लक्ष्य उन्हें प्राप्त होता है या नहीं उसके लिए आपको इस किताब को पढ़ना पड़ेगा। अंत में बहुत सारे प्रश्न ऐसे उभर कर आते हैं जिनका उत्तर मिलना अभी बाकी है। हो सकता है उनका जवाब पुस्तक के अगले खंड में मिल जाए और हो सकता है बाकी के खंड अधिक रोमांचकारी साबित हो।

आप यदि चाहे तो यूट्यूब पर भी बाहुबली की समीक्षा देख सकते है

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