हिंदी : आइये बात करते है 14 सितम्बर से 28 सितम्बर तक सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरने वाले विषय पर।

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बहुत  दिनों से कुछ लिखा नहीं था। पर आज कुछ ऐसा हुआ कि मन को रोका नहीं गया। विषय वही जो 14 सितम्बर से 28 सितम्बर के बीच काफी ज्यादा सुर्खियां बटोरता है और दूसरा विषय जिसकी वजह से हर रोज न जाने कितने नए बच्चे या अभिभावक परेशान हो जाते है। तो बात शुरू होती है यहाँ से।

आज मैं एक बच्ची को पढ़ने गयी। पिता जी  ने कहा था कि मैम थोड़ा अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान देना है तो मैंने कहा ठीक है पहले दिन अंग्रेजी से ही शुरू करते है।  बच्ची से मैंने पूछा की “व्हाट इस योर नाम”। बड़े प्यार से उसने नाम बताया तो मैंने कहा ठीक है आगे बढ़ते है। बच्ची पहली क्लास की है।

मैंने पूछा आपको A , B, C, D  आती है तो उसने कहा हाँ और ये भी कि A फॉर Apple और B फॉर Boy भी। मैंने कहा बहुत बढ़िया और आगे  पूछा कि अच्छा क, ख, ग, घ आता है?? तो उसने कहा नहीं और बगल से माता जी तब तक बोल पड़ी मैम हिंदी थोड़ी कमजोर है। मुझे मन ही मन हँसी आयी उनकी इस बात पर।

हाँ तो आज जो लिखने का जो विषय है वो इसी घटना से प्रेरित है। मुझे एक बात नहीं समझ आती अगर कोई बच्चा बचपन से हिंदी में बोल रहा है उसी माहौल में पढ़ रहा है उसे पहले बिल्ली की फोटो दिखाना , फिर बताना कि इसे अंग्रेजी में कैट कहते है और फिर उसकी स्पेलिंग सिखाना ज्यादा आसान है या CAT लिख देना और फिर कहना कि- दिस इस प्रोनोअनसेड एस  “सी ए टी – खैट। ” 

मुझे लगता है किसी भी हिंदी माहौल वाले बच्चे को  “A” सीखने से पहले “अ” का आना बहुत जरूरी है। ठीक उसी प्रकार अगर किसी बच्चे को जो बचपन से अंग्रेजी वाले माहौल में पढ़ा है तो उसे “अ” सीखने से पहले “A” आना बहुत जरूरी है।

क्यों?? क्यूंकि जिस माहौल में हम रह रहे हो उससे सम्बंधित चीजों को स्वीकार करना या सीखना ज्यादा आसान होता है। मैंने बच्ची का बस्ता देखा इतना भरी और किताबों में लिखी बातें उससे भी भारी। मुझे पता चला कि अध्यापक बच्चों को हिंदी में बोलने के लिए मना करते है ।अरे भाई कहां से आते है आप लोग। मतलब ये तो हद्द है। अगर आप उसे बोलने नहीं देंगे तो आप कैसे सिखा पाएंगे?

बच्चे से पहले दिन व्हाट इस योर नाम पूछने की बजाय ये सिखाना ज्यादा जरूरी है कि  क्या की अंग्रेजी व्हाट है , योर की तुम्हारा और नेम की है  नाम। समझ नहीं आता कितना बोझ लादा जायेगा इन छोटे छोटे बच्चों पर  ?? और अभिभावक बेचारे अलग परेशान। जहाँ पहले गणित को लेकर अक्सर लोग डरा करते थे आज उसका बाप अंग्रेजी आ गया है। अलग से बच्चों को अंग्रेजी की ट्यूशन लगवानी पड़ रही है।

पहले हम बचपन में पूरे शब्दावली की बारह कड़ी सीखते थे जैसे “क, का, कि, की, कु, कू, के, कै, को, कौ, कं, कः।”  और आज भी मुझे नहीं लगता की अगर किसी हिंदीभाषी वाले माहौल से आ रहे बच्चे को ये पूरे शब्दावली की बारह कड़ी सिखाई जाये और उनको अंग्रेजी में लिखने का तरीका बता दिया जाये तो कोई भी बच्चा अंग्रेजी नहीं सीख पायेगा, बल्कि वो लिख भी पायेगा और पढ़ भी पायेगा। 

हाँ अंग्रेजी क सारे शब्दों के अर्थ एक दिन में नहीं आ सकते अब भाई अंग्रेजी भी बाकी विषयों की तरह कोई घुट्टी तो है नहीं कि जो एक बार पिला दो तो सब आ जायेगा।  एक बार जिसको पढ़ना आ गया वो पढ़ते पढ़ते धीरे सीख ही जायेगा। कहावत तो सुनी ही होगी कि
 ” करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान 
   रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान। “

अरे भाई अगर आपको बच्चे को सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर ले जाना है तो कम से कम सबसे पहले उसके नीचे की सारी सीढ़ियाँ तो मजबूत बनाओ। मुझे अगर आज भी किसी ऐसे बच्चे को अंग्रेजी सीखनी हुई तो मैं सबसे पहले बारह कड़ी और उनको लिखने का तरीका ही सिखाऊंगी हिंदी में भी और अंग्रेजी में भी । आखिरकार बाकी सारे शब्द तो उन्ही की देन है।

और सारे अभिभावकों और शिक्षकों से अनुरोध है कि कृपया बक्श दीजिये बच्चों को। मशीन मत बनाइये उन्हें , थोड़ा बचपना भी जी लेने दीजिये। मैं ये नहीं कहती कि अंग्रेजी सीखने में कोई बुराई है या आप बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से न पढ़ाइये। बल्कि मेरा बस एक ही कहना है कि ये जो आप लोगों के अंदर का डर है कि आपका बच्चा कही पीछे न रह जाये या आपकी अपेक्षाएँ पर खरा न उतर पाएँ या आपके रिश्तेदार के रिश्तेदार के बच्चों से कहीं पीछे न छूट जाएँ , इन सारे डर को निकाल दीजिये।

पढ़ाई और दवाई वैसे ही आजकल बहुत महँगी हो गयी है। मेरा मानिये तो बच्चों को अपने हैसियत के हिसाब के स्कूल में ही भेजिए और हाँ इस बात का खास ख्याल रखिये की पढाई करने का तरीका सही हो। यकीन मानिये थोड़ी दिक्कत होगी पर अगर तरीका सही होगा तो बच्चा हर मायनों में आगे ही निकलेगा।

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