विकलांग श्रद्धा का दौर

विकलांग श्रद्धा का दौर
विकलांग श्रद्धा का दौर

 हरिशंकर परसाई जी का एक व्यंग्य प्रेमचंद के फटे जूते एक जमाने में पढ़ा था। उस वक्त इतना पता नहीं था कि ये एक तरह का लेखन है को परसाई जी इतने अच्छे से लिखते है और न ही उस वक्त किसी लेखक के बारे में जानने की इतनी दिलचस्पी रहती थी। हिंदी की किताब में हर एक पाठ को बस पाठ समझ कर, कविता या कहानी समझ कर पढ़ लिया जाता था। प्रेमचंद के फटे जूते पढ़ लेने के बाद काफी समय तक हरिशंकर परसाई जी याद भी नहीं रहे। उनकी कौन कौन सी किताबें है , हिंदी लेखन में उनका कितना बड़ा योगदान है , ये सब कुछ नहीं पता था। 

 पर धीरे धीरे उम्र बढ़ी और चीजों को थोड़ा पढ़ना समझना आने लगा। बहुत साडी किताबों के बारे में पता चला और बहुत सारी किताबें पढ़ी भी।  परसाई जी के बारे में थोड़ा और पता चला, उनके लिखने के तरीके के बारे में पता चला, फिर मुझे लगा कि उनकी किताब नहीं पढ़ी हिंदी में तो बहुत कुछ नहीं पढ़ा।

 हाल ही में विकलांग श्रद्धा का दौर किताब खरीदी और पढ़ा और उसके बाद तो बस मुझे वाह करना था। उनकी और भी किताबें मुझे पढ़नी है अब। उम्मीद करती हूं कि जल्द ही उनकी कई सारी किताबें पढूंगी।

 विकलांग श्रद्धा का दौर में लगभग 41 व्यंग्य है। है तो सब छोटे छोटे पर उनकी गहराई बहुत है। राजनीति से संबंधित जो थे उनमें से अक्सर मुझे नहीं समझ आए पर बाकी जो थे वो सब मुझे समझ आए। और सब के सब अच्छे है। पढ़ते पढ़ते कई बार आपको हंसी आ जाएगी। समाज पर, लोगों पर, राजनीति पर, लेखकों पर और यहां तक कि खुद को भी नहीं छोड़ा है उन्होंने। सब पर किसी न किसी तरीके का व्यंग्य लिखा है।

जिस दौर में ये किताब लिखी गयी थी उसके पिछले कुछ सालों में परसाई जी के हिसाब से दो महत्वपूर्ण घटना हुई थी। पहला राजनीतिक उथल – पुथल और दूसरा परसाई जी की टांग टूटना। परसाई जी इसे इस तरह लिखते है – ” राजनीतिक विकलांगता और मेरी शारीरिक विकलांगता “, परसाई जी ने कुछ रचनायें इस सन्दर्भ में भी अपनी किताब में लिखी है।

 मुझे बहुत अच्छी लगी ये किताब। और अगर आपको भी हिंदी किताबें पढ़ने से प्रेम है तो ये किताब जरूर पढ़े।

मैं यहाँ पर किताब का एक अंश लिखती हूँ , आपको खुद पता चल जायेगा कि कैसे उनकी लेखनी हास्य और व्यंग्य लिखने में कमाल करती है।

एक रचना है इनकी मध्यवर्गीय कुत्ता , जिसमे परसाई जी लिखते है –

“कुत्तेवाले घर मुझे अच्छे नहीं लगते। वहां जाओ तो मेजबान के पहले कुत्ता भौंककर स्वागत करता है। अपने स्नेही से नमस्ते हुई नहीं कि कुत्ते ने गाली दे दी “क्यों यहाँ आता है बे ? तेरे बाप का घर है ? भाग यहाँ से।
फिर कुत्ते काटने का डर नहीं लगता , चार बार काट ले। डर लगता है उन चौदह इंजेक्शनों का जो डॉक्टर पेट में घुसेड़ता है। यूँ कुछ आदमी कुत्ते से अधिक जहरीले होते है। एक परिचित को कुत्ते ने काट लिया था। मैंने कहा इन्हे कुछ नहीं होगा। हालचाल उस कुत्ते के देखो और उसे इंजेक्शन लगाओ।”

आप देख सकते है कि परसाई जी ने कितना सटीक व्यंग्य किया है यहाँ पर।

जरूरी नहीं कि आपको इनके लिखे सभी व्यंग्य समझ आये , मुझे खुद भी कुछ कुछ नहीं समझ आये। लेकिन जो समझ में आएंगे आप देखिएगा कि कैसे परसाई जी ने भिगो भिगो कर , समाज , राजनीति , व्यवस्था , श्रद्धा सब पर कोई न कोई चोट करी है। और जो नहीं भी समझ में आये कोई बात नहीं , क्योंकि पढ़ने में वो लेख फिर भी रुचिकर ही है। वास्तविकता को हास्य और व्यंग्य की तरह लिख पाना परसाई जी की खूबी है। 

हरिशंकर परसाई जी को “विकलांग श्रद्धा के दौर” के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।

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