Skip to content

Madhushala : हरिवंश राय बच्चन की सबसे मशहूर किताब

Madhushala
Madhushala

कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ !
पुस्तक गण है पीने वाले , पुस्तक मेरी मधुशाला।

ये पंक्तियाँ तो एकदम सही ही है , जाने ही कितने लाखों लोगों ने पढ़ा होगा लेकिन Madhushala (मधुशाला) आज भी लोगो के दिलों पर राज करती है।

इस पोस्ट में हम हरिवंश राय बच्चन की उस किताब के बारे में बात करेंगे जो प्रकाशित होने के बाद से अब तक धूम मचा रखी है। इस किताब का नाम है मधुशाला (Madhushala)। मधुशाला (Madhushala) का पहला संस्करण अप्रैल, 1935 में आया था और तब से लेकर आज तक इसके छिहत्तर संस्करण आ चुके है। इसका छिहत्तरवां संस्करण अप्रैल, 2024 में आया है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते है कि इस किताब ने कितनी धूम मचा रखी होगी।

मधुशाला(Madhushala) किताब आने के पहले , ये रुबाइयाँ सर्वप्रथम कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक कवि सम्मलेन में पढ़ी गयी थी। उस कवि सम्मलेन में कई लोगों ने अपनी रचनाएँ सुनाई थी पर आप यूँ समझ ले कि वो दिन बच्चन जी का ही था। बच्चन जी ने जब मस्ती में झूम – झूम कर मधुशाला का पाठ करना शुरू किया , सारे श्रोतागण भी झूम उठे। विद्यार्थी ही नहीं , बड़े – बूढ़ों के ऊपर भी इसका असर हुआ और वो झूम पड़े।

जिन्होंने सुना वो पागल हुए और जिन्होंने ने नहीं सुना उन तक ये शोहरत इस कदर पहुंची कि सभी का आग्रह हुआ कि एक बार फिर बच्चन जी की कविता का पाठ हो – केवल बच्चन जी का – केवल मधुशाला का। 

इस बार जम कर सभा हुई। कमरे का कोना – कोना भरा हुआ था , कही भी कोई भी जगह नहीं। यहाँ तक कि कुछ विद्यार्थी बाहर दरवाजों के सामने भी थे।
आइये आप तक भी मधुशाला की कुछ रुबाइयाँ पहुँचा देते है। रुबाई का शाब्दिक अर्थ होता है चौपाई और इसमें चार पद होते है। 

बहती हाला देखी, देखो लपट उठती अब हाला ,
देखो प्याला अब छूते ही, होंठ जला देने वाला ;
होंठ नहीं , सब देह दहे, पर पीने को दो बूँद मिले
ऐसे मधु के दीवानो को, आज बुलाती मधुशाला।

एक बरस में एक बार ही, जलती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाजी, जलती दीपों की माला ;
दुनियावालो, किन्तु, किसी दिन, आ मदिरालय में देखो ,
दिन को होली, रात दिवाली , रोज मनाती मधुशाला।

बनी रहें अंगूर लताएँ , जिनसे मिलती है हाला ,
बनी रहे वह मिट्टी जिससे , बनता है मधु का प्याला ;
बनी रहे वह मदिर पिपासा, तृप्त न जो होना जाने ,
बने रहें ये पीने वाले, बनी रहे ये मधुशाला।

ये तो बस कुछ रुबाइयाँ है जो आपके सामने है पर मधुशाला (Madhushala) में कुल मिलकर 135 रुबाइयाँ है। आखिर में इनके अलावा 4 और रुबाइयाँ जोड़ी गयी है, जो पहले पुस्तक का हिस्सा नहीं थी।

एक बहुत ही मजेदार बात इस किताब और बच्चन जी से सम्बंधित आपको जानना चाहिए। इस किताब Madhushala में हर रुबाई मधुशाला से खतम होती है। और मदिरा के बारे में ही पूरी किताब लिख दी है। तो बहुत से पाठक गण ऐसा सोचते थे कि जिस लेखक ने पूरी किताब मधुशाला पर लिख दी , वो तो दिन – रात मदिरा के नशे में चूर रहता होगा। पर बच्चन जी ने इस बात को खंडित करते हुए है वास्तविकता बताई कि , मदिरा नमक द्रव्य से उनका परिचय अक्षरशः बरायनाम है। मतलब उनको ऐसा कोई नशा नहीं है। हालाँकि उनको जिंदगी का नशा , कविताओं का नशा जरूर है।

पाठकों का भ्रम दूर करने के लिए उन्होंने एक रुबाई भी लिखी जो कि इस प्रकार है :

स्वयं नहीं पीता , औरों को , किन्तु पिला देता हाला ,
स्वयं नहीं छूता , औरों को , पर पकड़ा देता प्याला ,
पर उपदेश कुशल बहुतेरे से मैंने यह सीखा है ,
स्वयं नहीं जाता , औरों को , पहुँचा देता मधुशाला।

अगर आपने ये कहावत सुन रखी है : पर उपदेश कुशल बहुतेरे , जे आचरहिं ते नर न घनेरे। जिसका मतलब है कि , दूसरों को उपदेश देने वाले बहुत लोग हैं , पर जो खुद भी उस बात पर अमल करें , ऐसे लोग बहुत कम ही है। तो आप ऊपर लिखी रुबाई का अर्थ समझ ही सकते है कि बच्चन जी कहना चाह रहे कि , पर उपदेश कुशल बहुतेरे से ये मैंने सीखा है कि , खुद तो मधुशाला नहीं जाता लेकिन औरों को पंहुचा देता हूँ। 

एक और रुबाई बच्चन जी ने लिखी है जो कि एक प्रसिद्ध बात पर आधारित है कि “शराब जैसे – जैसे पुरानी होती है , वैसे – वैसे ज्यादा नशीली होती जाती है।

बहुतों के सिर चार दिनों तक , चढ़कर उतर गयी हाला ,
बहुतों के हाथों में दो दिन , छलक – छलक रीता प्याला
पर बढ़ती तासीर सुरा की , साथ समय के इससे ही ,
और पुरानी होकर मेरी , और नशीली मधुशाला।

मधुशाला (Madhushala) बड़ी ही खूबसूरत किताब है। मधुशाला (Madhushala) की भाषा बहुत ही सरल और सरस दोनों है। अगर आपने मधुशाला (Madhushala) पढ़ी है तो अपनी राय हमसे जरूर साझा करें और अगर नहीं पढ़े है तो जरूर पढ़ें।

Madhushala किताब खरीदें 

अमृता प्रीतम के बारे में पढ़ें : Amrita Pritam : दिल की आवाज

1 thought on “Madhushala : हरिवंश राय बच्चन की सबसे मशहूर किताब”

  1. Pingback: यार जादूगर(Yaar Jadugar) : नीलोत्पल मृणाल की तीसरी किताब - The Bookishmate

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *