वीरांगना Neera Arya की कहानी
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम सभी देश की आजादी के लिए न्यौछावर हुए शहीदों को याद करते है , उनकी जय करते है। स्वत्रंतता सेनानी हम सबकी नज़रों में अमर है। आज इस पोस्ट में , मैं आप लोगों के सामने एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की कहानी लेकर आ रही हूँ , जिनका नाम शायद कम ही लोग जानते होंगे।
तो आइये इस पोस्ट के जरिये “नीरा आर्य” की कहानी को जानते है, जो कि आजाद हिन्द फ़ौज की पहली महिला जासूस थी।
आजाद हिन्द फ़ौज का नाम तो शायद आपने सुन रखा होगा और सुभाष चंद्र बोस जी का नाम तो बिलकुल ही सुन रखा होगा। अगर नहीं सुन रखा है तो आपको सख्त जरूरत है , इनको जानने की। हमारे देश को आजाद कराने में सुभाष चंद्र बोस जी का बहुत बड़ा योगदान है। अभी, इस पोस्ट में हम बात करेंगे कि कैसे नीरा आर्य आज़ाद हिन्द फ़ौज और सुभाष चंद्र बोस के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बन गयी।
नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च 1902 को खेकड़ा में हुआ था। बचपन में ही इनके माता – पिता का महामारी में देहांत हो गया था। जब ये आर्य समाज के बहार फूल बेच रही थी तो सेठ छज्जूमल मिले और नीरा और उनके भाई को गोद ले लिया।
Neera Arya और सुभाष चंद्र बोस कैसे मिले ?
तो हुआ यूँ कि नीरा एक दिन पानी में तैरने गयी थी पर जलधारा को समझ नहीं पाने के कारण डूबने लगी। संयोग ही था कि नेता जी उस वक्त उधर ही थे और कूदकर उन्होंने नीरा की जान बचायी। तब नीरा ने सुभाष जी को राखी बांधी और इस तरह दोनों में भाई बहन का रिश्ता हो गया।
Neera Arya की शादी और फिर अलगाव
समय बीतता गया और नीरा भी इस बीच गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त कर 1928 में कोलकाता में जनरंजन से शादी भी कर ली। पर बाद में नीरा को जाकर पता चला कि जनरंजन ब्रिटिश साम्राज्य के गुप्तचर है और वो नेता जी (सुभाष चंद्र बोस जी को नेता जी के नाम से भी जाना जाता है ) की खोज – खबर में जुटे हुए है और अगर संभव हुआ तो मारने की भी प्लानिंग में है। इसकी जानकारी पाते ही नीरा ने अपने पति को समझाने की कोशिश की कि ऐसा करना ठीक नहीं है। जब जनरंजन ने नीरा की बात पर गौर नहीं दिया तो नीरा ने उनके सामने शादी या ब्रिटिश साम्राज्य की नौकरी में से कोई एक चुनने का प्रस्ताव रखा। जनरंजन ने नौकरी चुना और इस तरह नीरा अपने पति से अलग हो गयी।
Neera Arya का आजाद हिन्द फ़ौज से जुड़ना
आपको शायद पता हो कि नेता जी जल्द ही भारत को ब्रिटिश के चंगुल से छुड़ाना चाहते थे पर वो गाँधी जी की तरह अहिंसा के रास्ते में उतना विश्वास नहीं रखते थे। इसीलिए सुभाष जी ने विदेश जाकर जर्मनी में भारतीय सैन्य – दल की स्थापना की। बाद में जब उस सैन्य – दल का इस्तेमाल हिटलर अपने मन – मुताबिक करने लगा तो नेता जी जापान गए जबकि जापान तक का सफर उनके लिए खतरे से खाली नहीं था। 4 जुलाई 1943 में नेता जी ने आजाद हिन्द फ़ौज की कमान को संभाला और “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा” और “दिल्ली चलो” का नारा लगाया।
उसी साल 21 अक्टूबर को सिंगापुर में ही अस्थायी भारत सरकार “आजाद हिन्द सरकार” की स्थापना की गयी और कुछ देशों से इस सरकार को मान्यता भी मिली। इस अस्थायी सरकार के प्रधानमंत्री थे “सुभाष चंद्र बोस” और उनका 16 सदस्य का मंत्रिमण्डल बना। सिंगापुर में फ़ौज का मुख्यालय बना , फ़ौज की ब्रिगेड को अलग – अलग नाम दिए गए और उनकी ट्रेनिंग भी शुरू हो गयी। अप्रैल 1914 में “नेशनल बैंक ऑफ़ आजाद हिन्द (National Bank of Azad Hind)” का निर्माण हुआ। पर मई 1945 में ब्रिटिश सेना ने इस बैंक पर कब्ज़ा कर लिया था।
आप शायद सोच रहे होंगे न कि नीरा आर्य की कहानी कहाँ है इसमें। दरअसल उनकी कहानी जानने से पहले ये सब जानना जरूरी है। नीरा भी अपने गांव से आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने आयी थी। फ़ौज में नीरा , ” रानी झाँसी ” रेजिमेंट से थी। इस रेजिमेंट में 1000 से ज्यादा महिलाएं शामिल हुई थी और ये सब अच्छी जासूस भी थी। आजाद हिन्द फ़ौज ने , गुप्तचर विभाग को बहुत ही सक्षम तरीके से बनाया था। नीरा आर्य आजाद हिन्द फ़ौज की पहली महिला जासूस बनी। जासूस लड़कियों को साफतौर पर बताया जाता था कि पकडे जाने पर विष खा लेना है या फिर खुद को गोली मार लेनी है।
कैसे Neera Arya ने नेता जी की जान बचायी
एक किस्सा Neera Arya की जिंदगी का जो बहुत ही मशहूर है कि कैसे उन्होंने नेता जी की जान एक गुप्तचर से बचायी है , और नीरा के लिए आश्चर्य की बात कहे या दुःख की बात क्योंकि गुप्तचर कोई और नहीं बल्कि उनके पति ही थे।
हुआ यूँ कि नेता जो सो रहे थे और सुरक्षा का दायित्व लक्ष्मीबाई रेजिडेंट पर था। नीरा को आभाष हुआ कि कोई आसपास घात लगाकर कुछ करने की फ़िराक में है। तभी एक परछाई दिखी और Neera Arya ने उससे कोड वर्ड बताने को कहा। जवाब आया कि मैं गुप्तचर हूँ और अहम जानकारी देने आया हूँ। नीरा को आवाज जानी – पहचानी सी लगी और परछाई पास आने पर कन्फर्म हो गया कि वो कोई और नहीं नीरा के पति थे। वे वहाँ नेता जी को मारने के उद्द्येश्य से गए थे।
Neera Arya के मना करने के बावजूद , उनके पति ने तम्बू में घुसने की कोशिश की और नेता जी को मरने के लिए गोलियाँ दागी। वो गोलियाँ नेता जी के ड्राइवर निजामुद्दीन को जा लगी और इधर मौका पाते ही नीरा ने अपने पति पर रायफल तान दिया। परन्तु जयरंजन भी सावधान था और उसने अपने आप को सँभालते हुए दो गोलियाँ नीरा पर भी चला दी। नीरा अचेत हो गयी पर इस वाकये से बाकि लोग जग गए थे और नीरा को जब होश आया तो उन्हें पता चला कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं रहे।
इस तरह नीरा ने अपनी जान पर खेल कर अपने ही पति से नेता जी की रक्षा की। इसी तरह बहुत सी जगहों पर नीरा ने और रानी लक्ष्मीबाई रेजिडेंट की बाकी महिलाओं ने भी बहादुरी का प्रदर्शन किया है। नीरा ने जासूसी करते हुए कई अहम जानकारियाँ आजाद हिन्द फ़ौज को दी है। इनकी गुप्तचरी से एकत्र हुई सूचना के आधार पर एक बार आजाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों ने ब्रिटिश हवाई अड्डे पर आक्रमण किया और अपने लिए आहार की व्यवस्था की। ऐसे ही इनकी बहादुरी के बहुत सारे किस्से है।
जब Neera Arya को नजरबन्द किया गया
आजाद हिन्द फ़ौज के अधिकांश सैनिको और अधिकारियों को 1945 में गिरफ्तार कर लिया गया। रंगून पतन के बाद रानी झाँसी रेजिमेंट खत्म हो गयी और 3 मई को Neera Arya को भी गिरफ्तार कर लिया गया। फ़ौज के बंदियों को चार श्रेणियों में बांटा गया : श्वेत , धूसर , कृष्ण और अतिकृष्ण। नीरा को अतिकृष्ण में रखा गया। इन सब पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। जब वे बंदी थी तो उनसे बोला गया था कि उन्हें छोड़ दिया जायेगा अगर वो बता देंगी की नेता जी कहाँ है। जब नीरा ने जवाब दिया कि नेता जी हवाई दुर्घटना में चल बसे तो जेलर ने कहा कि तुम झूठ बोलती हो। नीरा का जवाब आया कि हाँ वो जिन्दा है और मेरे दिल में है। इस पर जेलर ने कहा कि हम तुम्हारे दिल से नेता जी को निकल देंगे और ऐसा कहकर उसने Neera Arya के आँचल पर हाथ दाल दिया और उनके कपड़े फाड़ते हुए लुहार को संकेत किया। लुहार ने ब्रेस्ट रिपर उठाया और नीरा के दाएं उरोज को काटने चला , उस औजार में धार नहीं था पर नीरा को असहनीय पीड़ा देते हुए गर्दन दबाकर बोलै गया कि ” अगर तुमने फिर से जबान लड़ाई तो तुम्हारे ये गुब्बारे छाती से अलग कर दिए जायेंगे। “
क्या क्या नहीं सहना पड़ा हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को। कितने लोगों ने हमें आज़ाद करने के लिए अपना खून बहाया है। हम सबको शुक्रगुजार होना चाहिए और उनके किये गए बलिदानों को कभी नहीं भूलना चाहिए। नीरा (Neera Arya) की तरह ऐसे न जाने कितने नाम होंगे जिनके बारे में हम जानते नहीं है , जिन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया आजादी के लिए।