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Toggleस्वदेश दीपक (Swadesh Deepak) की किताब काल कोठरी
स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) का नाम मैंने काफी सुन रखा था। उनकी एक किताब है “मैंने मांडू नहीं देखा”, बहुत प्रसिद्ध किताब है। बहुत सारे लोग कहते भी है उस किताब को पढ़ने के लिए। तभी से मेरे दिमाग में स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) का नाम है। अभी कुछ समय पहले एक पुस्तक मेला में गयी थी और वहाँ पर जब स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) की किताबें देखी तो सोचा लिया जाये और पढ़ कर देखा जाये। हालाँकि “मैंने मांडू देखा”, किताब तो नहीं दिखी मुझे वहां , पर उनके लिखे कुछ नाटक जरूर थे। बहुत छोटे छोटे नाटक है , दिखने में किताब भी बहुत पतली है, बस कुछ पन्नों की।
मैंने स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) की कुछ किताबें उठायी। “काल कोठरी”, “सबसे उदास कविता”, उनमें से है। यहां पर मैं किताब “काल कोठरी” के बारे में बात करूंगी। ये नाटक एक थिएटर अभिनेता “रजत” के इर्द – गिर्द घूमती है। रजत एक संघर्ष करता हुआ अभिनेता है , उसके पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है। बीवी से बहुत ताने सुनने को मिलते है , लेकिन रजत न जाने कितने लोगों की जिंदगी जीने में अपनी जिंदगी बिता रहा।
रजत की खुद की ज़िन्दगी के साथ – साथ एक नाटक का रिहर्सल भी दिखाया गया है। उसमें रजत के साथ साथ उसके सह – कलाकार को एक नया नाटक करने को मिलता है , जो एक ऐसे लेखक ने लिखा है जिनका नाटक आज तक कभी स्टेज तक नहीं पहुंच पाया था। लेखक है नवीन जी। नवीन जी 10 नाटक लिख चुके है लेकिन आज तक उनका नाटक कोई स्टेज पर करने को तैयार नहीं हुआ तो रजत के डायरेक्टर कौल को उन पर दया आ गयी और उन्होंने उनका एक नाटक करने को सोचा।
मेरे हिसाब से तो स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) जी का ये नाटक ठीक – ठाक ही है। विषय तो बहुत सारे उठाये गए है इस नाटक के जरिये पर किसी भी विषय पर बहुत ज्यादा गहराई में बात नहीं हुई है। संघर्ष करता थिएटर का एक कलाकार और उस पर ये महंगाई , ऐसे में कैसे गुजरा करे इंसान। कैसे पेट पाले अपना और अपने परिवार का। और फिर नाटकों के बारे में भी देखा जाये तो ये विषय उठाया गया है कि बहुत सारे नाटक है नहीं जो अच्छे हो , जिन पर परफॉर्म किया जाये। लेखक बस लिखने के लिए लिख रहे है। कोई अर्थपूर्ण नाटक नहीं आ रहा है। कौल साहब कहते है –
“कहाँ लिखे जा रहे है , अर्थपूर्ण नाटक। अपनी -अपनी राजनीति की रण्डी बन गए है लेखक। हाथ में कलम नहीं , लाठी है , लाठी। हाँक ले जाते है सारे पात्रों को अपने फटे हुए पार्टी झंडे के नीचे।”
एक विषय ये भी है कि जब पैसे नहीं हो , भूखे पेट ज्यादा दिन तक प्रेम भी नहीं सुहाता। कितना भी प्रेम विवाह कर लो लेकिन विवाह के बाद पेट तो भोजन मांगता है साहब। कैसे प्रेम से भर दीजियेगा पेट और कितने दिन। रजत और उसकी बीवी की झड़प आये दिन होती है , ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है , जबकि हुआ उनका प्रेम विवाह है।
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रजत और उसकी पति मीना के बीच का एक संवाद लिखती हूँ यहाँ पर –
मीना : जिंदगी कोई नाटक नहीं जिसकी लाइनें हिसाब – किताब से बोली जायें , एक सिलसिले में। लेकिन तुम। तुम कैसे समझोगे ये बात। न तुम्हारा जीवन अपना न तुम्हारी भाषा अपनी। मांगी हुई जिंदगी जीते हो , फिर क्यों नहीं बोलोगे मांगे हुए संवाद। सच कोई नाटक नहीं , कोई स्टेज नहीं जो बदल जाये तुम्हारे चाहने से। सच शादी है। सच है परिवार। और सच है मीना , मीना। माई से उधार माँगती मीना।
रजत : इतनी ही परम ज्ञानी थी , सच का इतना गहरा ज्ञान था तो नहीं करनी थी शादी मुझसे।
मीना : सच तब केवल देह तक सीमित था। आयु के उस दौर में लड़कियों को तकिये से लिपटकर सोने में भी आनंद आता है। उस उम्र में लड़कियां दिमाग से नहीं सोचती शरीर से सोचती है। केवल शरीर से। शरीर के कुछ मिनटों का आनंद बन जाता है उनके लिए जीवन का अंतिम आनंद। और तब रोती रहती है सारी जिंदगी। भीख मांगने के लिए हमेशा उठे हाथों वाली कमीनी जिंदगी।
रजत : और प्रेम। नौकरी तो मैं शादी के पहले भी नहीं….. ।
मीना : मत बोलो यह शब्द प्रेम। गाली है , गलीज गाली। सिनेमाहाल के अँधेरे में हाथ पकड़कर बैठना मेरे लिए प्रेम था। पार्कों में मिलना मेरे लिए प्रेम था। तुम्हारे किसी दोस्त के बिस्तरे में तुमसे लिपटकर लेटना मेरे लिए प्रेम था। डू नॉट अट्टर दिस वर्ड। आई हेट इट , हेट इट। दस सालों में जितनी बार तुम्हारे साथ सोई , अगर दूसरे मर्दों के साथ लेटती तो अपनी कोठी होती , अपनी कार होती। जानते हो अर्थ एक आदमी से प्रेम का। किराये का माकन और बदबू भरी जिंदगी। लव इज ए ब्लडी मिसअंडरस्टैंडिंग बिटवीन टू फूल्स।

एक अंक इंटरव्यू का भी है , जहाँ रजत तंग आकर नौकरी करने का सोचता है लेकिन वहाँ पर भी रजत को कुछ अपमानित सा ही किया जाता है। वैसे ये इंटरव्यू वाला अंक सही लगा मुझे। रजत के बेटे अंगद का पात्र अच्छे से लिखा गया है। एक इमोशनल एंगल और एक सामाजिक एंगल भी है उस पात्र को लिखने में। अंगद के एक पैर नहीं है। अंगद नाम रामायण कथा से लेकर रखा गया है। अंगद के जो भी डायलॉग्स है वो भी काफी अच्छे है।
एक पहलू ये भी दिखाया गया है कि एक बार जो थिएटर में गया फिर उसका बहार निकल पाना मुश्किल ही है।
किताब का एक अंश यहाँ पर लिखती हूँ
“कला की कल कोठरी। धू – धू कर जलती कल कोठरी। कर गया जो प्रवेश इसमें नहीं आ सकता कभी बाहर। एक लम्बा , काला कारावास। इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं। बिलकुल कोई रास्ता नहीं। सूर्य की किरण , मात्र एक किरण के लिए भी कोई प्रवेश – द्वार नहीं। क्यों चुनते है हम इस कल कोठरी को अपनी इच्छा से। मुक्ति के लिए। हमारी, आपकी मुक्ति के लिए। दुःख , संताप , क्रोध , हिंसा , द्वेष , और जो दोगला है , जो दिन – रात करता है हमारी आत्मा को लहूलुहान , उसे धोकर पोंछ देने के लिए। तभी तो आते हैं हम इस मायानगरी , थिएटर में। अपने आपसे मुक्त होने के लिए…… ।”
मैंने स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) की बहुत किताबें नहीं पढ़ी है। काल कोठरी और सबसे उदास कविता पढ़ी है , और इनको पढ़ कर मुझे ऐसा लगता है कि स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) जी बोल्ड विषय उठाते है, और उनके किरदार भी बोल्ड होते है , लेकिन काल कोठरी में मुझे ऐसा लगा कि उनके किरदारों को थोड़ा और खोलना था। बीच में मुझे कुछ खाली सा लगा। हाँ , अंत सही लगा मुझे। अगर आपको नाटक पढ़ने का शौक है तो स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) जी की ये किताब पढ़ सकते है , केवल 54 पन्ने। पढ़ लिए हो तो अपना अनुभव साझा कीजिये और नहीं पढ़े है , तो पढ़ने के बाद साझा कीजियेगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की स्वदेश दीपक(Swadesh Deepak) जी के इस नाटक का मंचन भी काफी लोगों ने किया है। यूट्यूब पर आपको वीडियोस भी मिल जाएँगी।