कसप : भावनाओं की गहराईयों में एक यात्रा
कसप
मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखा कालजयी उपन्यास “कसप”।आप कभी भी किसी लेखक या पाठक से ही कुछ हिंदी किताबों के नाम साझा करने को कहेंगे तो उनके नामों की श्रंखला में एक नाम कसप का भी मिलेगा। कसप इतनी ज्यादा प्रसिद्ध किताब है।किताब की बात करें तो ये एक कहानी है नायक और नायिका की।नायक बुद्धिमान है,पढ़ा लिखा,फिल्मों में काम करने वाला,कविता कहानियां लिखने वाला और उसका नाम बोले तो डी. डी. यानी देवदत्त तिवारी, पर नायिका के लिए वो फिर भी लाटा है लाटा।लाटा यानी मूर्ख।
नायिका है तो बड़ी खूबसूरत पर बेपरवाह। उसकी खूबसूरती की खबर भी उसे शहर वालों ने ही दी है । पढ़ाई लिखाई से नायिका का दूर दूर तक कोई रिश्ता नाता ही नहीं है।बड़ी मुश्किल से दसवीं पास हुई है। दरअसल नायिका तो नायिका थी ही नहीं वो सिर्फ बेबी थी, नायिका तो उसे परिस्थितियों और घर वालों ने बना दिया।
बेबी नाम के अनुसार ही काम भी करती।बड़ी खिलंदड़ प्रवित्ति की है बेबी।पर एक तरफ भले बेबी को खिलंदड़ प्रवित्ति का दिखाया गया हो पर वहीं पर दूसरी तरफ कसप में बेबी के किरदार का चित्रण बहुत मजबूत दिखाया गया है। नायिका भले ही हंसी – मजाक वाली हो लेकिन उसके अंदर अपनी बातों को लेकर स्थिरता है। बेबी ने जो सोचा है , जो ठाना है वो करके रहना है।
कसप की कहानी आंचलिक भाषा कुमाऊनी में लिखी गई है। कसप का कुमाऊनी अर्थ है क्या जाने। कहानी की बात करें तो नायक और नायिका किसी शादी के जनवासे में मिलते है । नायक बहुत ही हास्यापद स्थिति में नायिका से मिलता है और यही से उनके हँसी मजाक, ताने – बाने की शुरुआत होती है। हालाँकि नायक बहुत जल्दी ही नायिका के प्यार में पड़ जाता है पर नायिका उसे तो मजा आ रही होती है नायक के हास्य कामों में।
शादी से वापस जाने के बाद नायक पत्र लिखता है नायिका के नाम । पर नायिका तो ढंग से पढ़ नहीं पाती इसीलिए नायिका मदद लेती है अपने पिता की। हालांकि डी.डी. पत्र में ऐसा कुछ नहीं लिखता था जो एक पिता को पढ़ने में संकोच हो बल्कि मन ही मन में इसी बहाने नायिका के कुछ पढ़ने पर उन्हें खुशी होती थी।
पर क्या यह पत्र का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा ? क्या डी.डी. के पत्र में पिता को अपनी पुत्री के लिए उसका प्रेम नहीं दिखेगा? और नायिका जिसे अभी तक इस खेल में मजा आ रही है क्या आगे भी वह ऐसी ही रहेगी या उसे भी नायक से प्रेम हो पाएगा? क्या नायिका भी कभी नायक के नाम पत्र लिख पाएगी ? ये सब ऐसे सवाल है जिनका मैं आपको दे सकती हूं पर आप खुद पढ़े तो ज्यादा अच्छा होगा।
कसप में सभी किरदारों का चित्रण बहुत अच्छे से किया गया है। नायक और नायिका के अलावा नायिका की माँ , बब्बी दी , गुड़िया , साबुली कैंचा , बब्बन ये सारे किरदार आपको हँसाने, रुलाने या सोचने पर मजबूर कर देंगे। इस किताब का अंत मुझे बड़ा अच्छा लगा। किताबों का अंत मेरे लिए कुछ ज्यादा ही रुचिकर होता है। कई बार ऐसी किताबें होती है जिनमे सब कुछ बहुत अच्छा होता है , लेकिन अगर मुझे किताब का अंत नहीं अच्छा लगा तो मजा थोड़ा किरकिरा सा हो जाता है , पर अगर अंत खूबसूरत हो तो एक संतुष्टि सी मिल जाती है।
मेरे लिए ये किताब एक असफल प्रेम कहानी का चित्रण है और इसको पढ़ने के लिए आपको धैर्य की जरूरत पड़ेगी।कुमाऊनी भाषा , नायक का लाटापन , नायिका की बेबाक बोली , मध्यमवर्गीयता और सही समय पर दार्शनिकता , ये सब कसप को और खास बनाती है। अगर आप बहुत साहित्यिक किस्म के व्यक्ति है, लंबी चौड़ी कहानियाँ पढ़ने में जरा भी बोरियत नहीं होती और प्रेम कहानी के साथ – साथ आपको आपको दार्शनिकता पसंद है तो आपको ये किताब “कसप “ जरूर पढ़नी चाहिए।
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