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कुछ किताबें ऐसी होती है जिनके बारे में पढ़ने के बाद या तो बहुत कुछ कहा जा सकता है या तो बहुत कम (पर ये कम इसलिए कि किताब बहुत अच्छी होती है और थोड़ा सा ही बता कर ये कहने का प्रयास किया जाता है कि पूरी किताब आप खुद पढ़े और आनंद लें।) “कितने पाकिस्तान” भी इसी वर्ग में शामिल है।
कितने पाकिस्तान शीर्षक से ऐसा लग सकता है कि किताब शायद पाकिस्तान के बार में हो या फिर भारत – पाकिस्तान के विभाजन पर हो। पर ऐसा नहीं है , ये किताब सिर्फ भारत – पाकिस्तान के विभाजन के बारे में नहीं है , बल्कि ये किताब तो हर उस विभाजन के बारे में है जो कहीं भी किसी भी वजह से हो। एक सन्देश देती है ये किताब हमारी आवाम को कि विभाजन जिस भी तरह का हो , चाहे वो जन्म के आधार पर , जाति के आधार पर , भाषा के आधार पर , धर्म के आधार पर , रंग के आधार पर , या कोई भी आधार पर हो , विभाजन बस बंद होना चाहिए। हम कितना बाटेंगे इंसान को।
आमतौर पर यही होता है कि किसी भी किताब में कोई नायक है, नायिका है , उनकी मुलाकात फिर मिलने या बिछड़ने की बात। पर यहाँ तो ऐसा कुछ है ही नहीं। यहाँ पर वक़्त ही सबसे बड़ा नायक भी है और खलनायक भी है। उपन्यास लिखने का जो तरीका रहा है उसे तोड़ते हुए कमलेश्वर जी ने एक ऐसा उपन्यास लिखा है जो प्रयोगवादी है और जिसे लिखने के लिए एक गहन अध्ययन की जरूरत होती है।

ये कहानी सिर्फ हिंदुस्तान के विभाजन की नहीं है , ये कहानी सिर्फ इस विभाजन से पनपे पाकिस्तान की नहीं है , बल्कि ये कहानी है हर उस विभाजन की जिसकी नीव नफरत रही है , जो विभाजन धर्म , जाति, स्वार्थ, इत्यादि के आधार पर किया गया हो। और ऐसे विभाजन के फल को पाकिस्तान की संज्ञा दी गयी है जो नफरत की दीवार पर खड़ा किया गया है।
इस किताब के मुख्य किरदार है अदीब और अर्दली। अदीब एक ऐसा व्यक्ति जो बुद्धिजीवी है, साहित्यकार है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है।और अर्दली है अदीब का कभी साथ न छोड़ने वाला साथी।और इनके साथ – साथ एक और जो मुख्य किरदार है वो है खुद समय। आप समय को कटघरे में खड़ा जरूर पाएंगे। अदीब की एक अदालत है जिसमें वक्त, इतिहास, और इनके साथ ही हर उस इंसान को हाजिर होना पड़ता है जो एक नया पाकिस्तान बनाने के आरोपी है।
फिलहाल तो यहां पर कम ही लिखा जा सकता है इसलिए इस अदालत की व्याख्या “कितने पाकिस्तान” के कुछ पंक्तियों के जरिए –
“यह अदालत उन लोगों पर चल रहे मुकदमों की अदालत है, जिनकी इंसानी आत्माएं उनके जीते जी चल बसी थी, या चल बसी है या चल बसेंगी। और जो अपने दौर के या अगले दौर के या आने वाले दौर के आदमी की जिंदगी, उसकी सोच और राहत से जी सकने के लिए खतरा बन गए थे, बन गए है या बन सकते है।”
अजीबों गरीब नाम (इसमें लेखक की कोई गलती नहीं है। इतिहास के मामले में नाम और पहचान बदल देना लेखक के बस में नहीं होता।) के सिवा इस किताब में ऐसा कुछ नहीं है जो पसंद न किया जा सके।
“कितने पाकिस्तान” केवल एक ऐतिहासिक उपन्यास नहीं है, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं, दर्द, और संघर्ष की गाथा है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि विभाजन जैसे घटनाओं का मानव समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है और हम उनसे क्या सीख सकते हैं।कितने पाकिस्तान को 2003 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
कमलेश्वर ने इस उपन्यास के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश की है कि इतिहास से सीखना और उसे समझना जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके। “कितने पाकिस्तान” एक ऐसी रचना है, जो समय की सीमाओं को पार कर हर पीढ़ी के पाठकों को प्रभावित करती रहेगी।
कितने पाकिस्तान क्यों पढ़ें ?
- आप जो जीवन शैली जी रहे, क्या आप नहीं जानना चाहते इसके पीछे क्या हुआ होगा ?
- क्या आपको अपने देश के इतिहास के बारे में रूचि नहीं है ?
- क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे आखिर बाबरी मस्जिद कौन बनवाया था, इसका कोई और भी सच हो सकता है ?
- क्या दुनिया में सिर्फ एक पाकिस्तान है या कोई अलग नाम, रूप और रंग लिए कोई और पाकिस्तान भी है ?
कितने पाकिस्तान क्यों न पढ़ें ?
- ऐसी कोई वजह नहीं है जिसकी वजह से आप किताब न पढ़ें।
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