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Sakshatkar (साक्षात्कार) Book Review | Manav Kaul

जब हम किसी एक लेखक की कुछ अच्छी किताबें पढ़ लेते है तो उनकी बाकी किताबों से बहुत ज्यादा उम्मीद कर बैठते है। बहुत बार लेखक ऐसी उम्मीदों पर खरे उतरते है पर बहुत बार निराशा भी हाथ लगती थी। कुछ लेखकों की किताबों के साथ मेरे ऐसा कुछ अनुभव हाल – फ़िलहाल में ही रहा है। मैं ज्यादातर हिंदी किताबें पढ़ती हूँ। पुरानी किताबों (पहले के लेखकों द्वारा लिखे) के साथ – साथ मैं नए लेखकों को भी पढ़ने की कोशिश करती हूँ।

पिछले कुछ सालों में नयी वाली हिंदी की लहर काफी तेजी से आयी जिसमे दिव्य प्रकाश दुबे , नीलोत्पल मृणाल , मानव कौल , सत्य व्यास , निखिल सचान जैसे कई लेखकों का काफी हाथ रहा है। मैंने भी इनकी किताबों में से कई किताबें पढ़ रखी है जैसे दिव्य प्रकाश दुबे की लगभग सभी किताबें , नीलोत्पल मृणाल की तीनो किताबें , मानव कौल की लगभग किताबें , सत्य व्यास जी की कई किताबें और निखिल सचान की भी एक।

मुझे इनकी शुरूआती किताबें काफी सही लगी थी तो मेरा रुझान हमेशा इनकी आने वाली नयी किताबों के बारे में बना रहा। इसलिए मैं कोशिश करती कि जैसे ही इनकी की किताब आये मैं तुरंत मँगा लूँ। पर हाल – फ़िलहाल की इनकी किताबों से मुझे कुछ कुछ निराशा हो रही है।

जैसे मैंने दिव्य जी की किताब यार पापा पढ़ कर निराशा हाथ लगी , नीलोत्पल जी की यार जादूगर और अब मानव कौल की साक्षात्कार के साथ भी यही हुआ। साक्षात्कार पढ़ कर मुझे यही लगा कि कहीं जल्बाजी में इस किताब के कुछ इससे छूट गए। साक्षात्कार में ज्यादा कुछ मुझे साक्षात्कार जैसा मुझे बहुत कुछ लगा नहीं।

हाँ , मुझे मानव कौल की कई किताबें पसंद आयी है , “शर्ट का तीसरा बटन“, “रूह”, “प्रेम कबूतर”, “कतरनें”,ऐसे ही और भी। उनकी लेखनी से मुझे ऐसे ही लगता है कि वो सच्चाई और कल्पना के बीच इस कदर सामंजस्य बिठा कर लिखते है कि पढ़ने वाले को पता भी न चले कि वो ठीक ठीक इस समय कहाँ है , कल्पना के सागर में गोते लगा रहा है या फिर सच्चाई को जी रहा है। साक्षात्कार(Sakshatkar) में भी कुछ वैसा करने की कोशिश की गयी पर ठीक से वैसा बन नहीं पाया।

Sakshatkar
Sakshatkar

Sakshatkar (साक्षात्कार) किताब के बारे में थोड़ा विस्तार में

साक्षात्कार(Sakshatkar) की शुरुआत अच्छी लगी मुझे और अंत भी अच्छा था पर बीच में जो घुमाया गया है , उसको पढ़ने के बीच में मुझे ऐसा भी हुआ कि अब रख देती हूँ किताब , बाद में पढूंगी। हालाँकि ज्यादातर उनकी किताबों के साथ मुझे हमेशा आगे की यात्रा में जाने की रूचि रहती , आगे क्या होगा , पात्र कौन से नए सफर में होंगे , ये सब जानने का मुझे बड़ा इंतजार रहता , पर साक्षात्कार को पढ़ कर ऐसा लग रहा था मानो मुझे पता है आगे क्या होने वाला है , जबरदस्ती इसको तोडना मरोड़ना क्यों।

रुबीना , अतीव , शुभांकर सब एक ही घटना लिख रहे है , एक ही जैसा लिख रहे है , पर क्या लिख रहे है , किसको लिख रहे है , और फिर मुझे एक बात समझ नहीं आयी कि किताब का नाम साक्षात्कार(Sakshatkar) तो है पर न तो मुझे अतीव का साक्षात्कार लेना और शुभांकर का साक्षात्कार देना समझ आया और न ही रुबीना का साक्षात्कार लेना और शुभांकर का साक्षात्कार देना समझ आया।

अगर आपने साक्षात्कार(Sakshatkar) नहीं पढ़ी है तो मैं आपको बता दूँ , की इस किताब के तीन मुख्य पात्र है , शुभांकर जो कि एक नामी लेखक है , अतीव जो कि एक मैगजीन के लिए काम करता है (लेखक बनना चाहता है पर अभी तक कुछ लिख नहीं पाया है ) और रुबीना जो कि पेशे से वकालत है और अतीव की गर्लफ्रेंड भी है। कहानी के बाद के हिस्सों में आपको रुबीना के बारे में और भी बातें पता चलेंगी।

रुबीना को शुभांकर की किताबें बहुत पसंद है और उसने वो किताबें अतीव को या तो पढ़वाई है या फिर सुनाई है। कहानी का जो मुख्य प्लाट है वो ये है कि अतीव को एक मौका मिलता है शुभांकर का साक्षात्कार लेने का और अतीव और रुबीना इस साक्षात्कार के प्रश्नों को बहुत अच्छे से तैयार करते है। रुबीना और अतीव इसे एक अवसर के रूप में देखती है जिससे अतीव को काफी कुछ सीखने को मिलेगा लेखन के बारे में।

साक्षात्कार(Sakshatkar) दो दिन में होता है। अब वो कैसे होता है , क्या पूछा और बताया जाता है ये सब किताब पढ़ कर आपको ज्यादा ठीक लगेगा। पर इस साक्षात्कार के छपने के बाद जो चीजे शुरू होती है बस उसको कौन किस तरीके से लेता है , किसका क्या फायदा क्या नुकसान होता है , कौन किस बात को कितना सही करने की कोशिश करता है और ये सब करने की होड़ में कौन कितना पता है , कितना खोता है ये सब तो पढ़िए और फिर कमेंट में बताइये कि कैसा रहा आपका अनुभव।

सच बताऊँ में मुझे नयापन नहीं दिखा साक्षात्कार(Sakshatkar) में। इसलिए मैंने शुरुआत में ही कहा कि कहीं जल्दबाजी में कुछ छूटा तो नहीं रह गया। अगर आपने मानव कौल की कोई और किताब नहीं पढ़ी है , तब का मुझे आईडिया नहीं कि आपको कैसा लगेगा पर चूंकि मैंने उनकी कई किताबें पढ़ रखी है ये तो ये सब मुझे मेरी उम्मीद के हिसाब से निराश करने वाला था।

एक पात्र तितली जिसको अच्छे से लिखा है मानव ने। और मुझे लगता है वो अपनी किसी भी किताब में तितली को अच्छे से लिखते है। (उनकी एक किताब तितली नाम से भी है , मैंने वो किताब नहीं पढ़ी है अभी तक तो मुझे पता नहीं कि उसमें कैसा लिखा होगा , पर बाकियों में तो अच्छा लिखा है।)

फिलोसॉफी बिलकुल है साक्षात्कार(Sakshatkar) में। मानव कौल की किताबों में होता भी है। इस किताब में कही सही लगता है ये तो कही पर लगता है जबरदस्ती है। शुभांकर का किरदार उतना सॉलिड नहीं है जितना होना चाहिए , अतीव और रुबीना का किरदार कहीं ज्यादा अच्छा लगा मुझे। किताब हिंदी में है , सरल भाषा में है।

हिंदी किताब पढ़ने वाले या अभी जो नया नया शुरू कर रहे , आप एक बार पढ़ सकते है। जैसे कुछ फिल्मों को देख कर हम कहते है कि भई समय है और मन है तो देख लो , one time watch है , वैसे ही इस किताब के लिए मेरा यही है कि भई समय है और कुछ हल्का पढ़ने का मन है तो पढ़ लो आप , one time read है।

अगर आपको मानव कौल की और भी कोई किताब पढ़नी है , तो आप “शर्ट का तीसरा बटन” जरूर पढ़े , बहुत अच्छी किताब लगी थी मुझे।

साक्षात्कार(Sakshatkar) अगर आप पढ़ लिए हो या पढ़ने वाले हो तो अपने विचार जरूर साझा कीजिये।

P. S. मुझे साक्षात्कार(Sakshatkar) नहीं अच्छी लगी इसका मतलब ये नहीं कि आपको भी नहीं लगेगी। विचार अलग – अलग बिलकुल हो सकते है।

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शर्ट का तीसरा बटन किताब की समीक्षा हिंदी में पढ़ें:  Shirt ka Teesra Button by Manav Kaul in Hindi

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