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Musafir Cafe – दिव्य प्रकाश दुबे

अक्सर ही हम ज़िन्दगी की राह  में चलते चलते ठिठक से जाते है | हमें एहसास ही नहीं होता की हमें कहाँ जाना है और हमें खुद  से या हमारी ज़िन्दगी से चाहिए क्या ?? ऐसे ही मनोभावों को लिए हुए मुसाफिर कैफ़े (Musafir Cafe) की कहानी मुख्य पात्र  सुधा और चन्दर के इर्द गिर्द घूमती है | हम सब इस दुनिया में घूमने वाले एक मुसाफिर ही है और हमारी ज़िन्दगी में आने जाने वाले लोग भी |

Musafir Cafe
Musafir Cafe

चन्दर और सुधा भी ऐसे ही मुसाफिर है जो शादी के चक्कर में एक दूसरे से मिल जाते है जबकि शादी दोनों में से किसी को नहीं करनी होती है |चन्दर एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होता है जबकि सुधा एक डिवोर्स एक्सपर्ट लॉयर होती है | अगर सुधा के शब्दों में कहूँ तो ” सही बताऊँ तो डिवोर्स तो कोर्ट में आने से पहले ही हो चुका होता है | हम तो बस सरकारी स्टैम्प लगाने में और हिसाब – किताब करने में मदद करते हैं | “

कभी – कभी न चाहते हुए भी कुछ लोगों का हमारी ज़िन्दगी में आना तय ही होता है | ठीक उसी प्रकार सुधा और चन्दर भी एक दूसरे की ज़िन्दगी में आये और इसी ज़िन्दगी को शब्दों में पिरोते हुए दिव्य प्रकाश जी ने “Musafir Cafe” लिख डाली |

Musafir Cafe में भावनाओं का सामंजस्य देखने लायक है | कहानी के पात्र बहुत ही समझदार और हालात के आगे न झुककर बल्कि उनका सामना करते हुए दिखे है , खासकर सुधा का जिद्दीपन स्वभाव शुरू से लेकर अंत तक एक जैसा है | शादी एक बहुत बड़ा सवाल उभरकर आया है यहाँ पर |  जिस आधुनिकता के दौर में हम जी रहे है क्या वाकई शादी इसमें एक अहम भूमिका निभाती है ? या फिर रिश्ते और दो लोगों की समझ ?

Musafir Cafe पढ़ने के दौरान आप कई प्रकार के कष्ट तो कई प्रकार के सुख भी अनुभव करेंगे | लेखक जी ने पलों को बहुत ही गहराई में और मार्मिक तरीके से पेश  किया है | पम्मी और विनीत भी बहुत ही सुलझे हुए पात्र दिखाई पड़ेंगे जो अंत तक आपको बांध कर रखेंगे | अगर आप भी अपने जैसे मुसाफिरों के जीवन को अनुभव करना चाहते हैं तो अवश्य ही ये पुस्तक आपके लिए है |

मुसाफिर कैफ़े (Musafir Cafe) उपन्यास के मुख्य बिंदु है – जीवन की यात्रा , खुद की खोज , और प्रेम और रिश्ते। इन सभी बिंदुओं को मुसाफिर कैफ़े में बड़े ही संवेदनशील और सजीव तरीके से प्रस्तुत करता है। मुझे लगता है यह उपन्यास विशेषकर युवाओं को पसंद आने वाली है , क्योंकि यह उनकी जिंदगी के कई पहलुओं को दर्शाता है। अगर आप ऐसी कहानी पढ़ना चाहते है , जो आपके दिल को छू जाए , तो आप इस किताब को पढ़ सकते है।

मुसाफिर कैफ़े (Musafir Cafe) की कुछ खूबसूरत पंक्तियाँ

“जिंदगी की कोई भी शुरुआत हिचकिचाहट से ही होती है। बहुत थोड़ा सा घबराना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि अगर थोड़ी भी घबराहट नहीं है तो या तो वो काम जरूरी नहीं है या फिर वो काम करने के लायक ही नहीं है।”

“भटकना मंजिल की पहली आहट होती है। कोई सही से भटक ही ले तो भी बहुत कुछ पा जाता है।”

“परफेक्ट लाइफ भी कोई लाइफ हुई।”

“जिनके आंसू न बहते है न सूखते है, वो ज़िन्दगी को करीब से समझ पाते है।”

“हमें केवल यादें नहीं आती बल्कि सबसे ज्यादा वो यादें याद आती है जो हम बना सकते थे।”

इस किताब की समीक्षा आप यूट्यूब पर भी देख सकते है

दिव्य प्रकाश दुबे के बारे में

दिव्य प्रकाश दुबे का जन्म 8 मई 1982 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उन्होंने College of Engineering Roorkee से Computer Science Engineering में डिग्री लेने के बाद , Symbiosis Institute of Business Management, Pune से MBA किया। उन्होंने MBA के बाद कुछ समय तक जॉब भी किया लेकिन , उसके बाद वो पूरे तरीके से लेखन में आ गए। दिव्य जी ‘ नयी वाली हिंदी ‘ विधा में अपनी किताबें लिखते है। 

Divya Prakash Dubey

दिव्य प्रकाश जी की अब तक 7 किताबें आ चुकी है।

  • मसाला चाय : यह उनकी पहली किताब है जिससे दिव्य जी ने हिंदी साहित्य की दुनिया में कदम रखा। ये किताब आम ज़िन्दगी की छोटी – छोटी कहानियों का संग्रह है। 
  • Terms and conditions apply : यह एक और कहानी संग्रह है, जिसमें आधुनिक जीवन की जटिलताओं और युवाओं की समस्याओं को सरल और सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
  • मुसाफिर कैफ़े (Musafir Cafe) : इस किताब के मुख्य बिंदु है : जीवन की यात्रा , खुद की खोज , और प्रेम और रिश्ते। इन सभी बिंदुओं को मुसाफिर कैफ़े में बड़े ही संवेदनशील और सजीव तरीके से प्रस्तुत करता है।
  • अक्टूबर जंक्शन : यह उनका पहला उपन्यास है, जो एक प्रेम कहानी है और साथ ही इसमें जीवन के अलग – अलग पहलुओं का समावेश है। 
  • इब्नेबतूती : यह किताब एक सफरनामा है, जिसमें लेखक ने अपने यात्रा अनुभवों और उनसे जुड़े किस्सों को साझा किया है।
  • आको – बाको : आको बाको 16 कहानियों का संग्रह है। कहानियाँ ऐसी जो आपके दिल को छू ले। 
  • यार पापा: यह किताब पापा बेटी की बॉन्डिंग कांसेप्ट, दोस्ती और ज़िन्दगी के ऊपर आधारित है।

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1 thought on “Musafir Cafe – दिव्य प्रकाश दुबे”

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