प्रतिज्ञा (Pratigya) समीक्षा हिंदी में
प्रतिज्ञा(Pratigya) की कहानी
प्रतिज्ञा(Pratigya) कहानी है त्याग की, मित्रता और शत्रुता की, सामाजिक और व्यक्तिगत विचारों के बदलाव की और इन सबसे ऊपर ये कहानी है एक विधुर और विधवा के प्रति समाज और व्यक्ति विशेष के विचार की। और ये कहानी है उस समय की जब भारत में विधवा विवाह को स्वीकार नहीं किया जाता था।
कहानी के मुख्य पात्र अमृतराय और दाननाथ में बचपन से लेकर अभी तक बहुत गहरी दोस्ती होती है। अमृतराय विधुर है और उनकी शादी की बात प्रेमा (जो अमृतराय की स्वर्गवासी पत्नी की बहन है) से चल रही है। दाननाथ बहुत ही सरल स्वभाव के व्यक्ति है और उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की है क्योंकि जिस लड़की से उन्हें प्रेम है वो है प्रेमा। पर ये उनकी ये प्रतिज्ञा तब टूट जब उनके मित्र अमृतराय, प्रेमा से विवाह न करने की बजाय किसी विधवा से विवाह करने की प्रतिज्ञा करते है।
प्रेमा के आलावा ये कहानी पूर्णा की भी है। पूर्णा एक विधवा है और प्रेमा की सहेली होने के नाते उसे प्रेमा के घर में रहने की जगह दी जाती है। इस कहानी के जरिए एक विधवा की तरफ उठने वाली आंखों का हाल बयान किया गया है। प्रेमा के जरिए एक स्त्री के त्याग और पूर्णा के जरिए एक विधवा के कठिन जीवनकाल को दिखाया गया है। बचपन की दोस्ती में भी कुछ खट्टे पल आ सकते है, इस भाव को प्रेमचंद जी ने बहुत अच्छे से दिखाया है।
कहानी जितनी अच्छी है उतनी ही अच्छी इसकी भाषा शैली है। हालांकि प्रेमा और पूर्णा को थोड़ा और स्थान मिल सकता था।पूर्णा के भावों को समझना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि उसके भाव अस्थिर है। प्रतिज्ञा ज्यादा लंबी किताब नहीं है, आराम से एक बार में ही बैठ कर पढ़ा जा सकता है और प्रेमचंद जी की लेखनी का आनंद लिया जा सकता है।
प्रेमचंद के बारे में
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस में हुआ था। प्रेमचंद का नाम शुरू से प्रेमचंद नहीं था। इनका नाम धनपत राय हुआ करता था , लेकिन बाद में वे मुंशी प्रेमचंद के नाम से ही जाने जाने लगे। दरसअल धनपतराय से नवाबराय और फिर नवाबराय से प्रेमचंद होने की उनके लिखने से ही जुड़ी हुई है ।
धनपतराय जो भी लिखते थे , उसमें धनपतराय नहीं , बल्कि नवाबराय नाम का इस्तेमाल करते थे। एक बार इनकी एक रचना छपी जिसका नाम था “सोड़ो वतन”, और ये किताब अंग्रेज शासकों को पसंद नहीं आयी। लिहाजा उन्होंने नवाबराय की खोजबीन चालू की और उनकी कृति को जला दिया गया। उन पर न लिखने का बंधन भी लगाया गया। अब भला कोई लेखक किसी बंधन से आज तक अपने कलम को रोक पाया है।नवाबराय को इस बंधन से बचने के लिए मुंशी दयानारायण निगम ने “प्रेमचंद” नाम सुझाया और इस तरह , धनपतराय , नवाबराय से प्रेमचंद हुए।
प्रेमचंद से मुंशी प्रेमचंद होने की कहानी एक पत्रिका से जुड़ी है । पत्रिका का नाम था हंस। हंस का संपादन कन्हैयालाल मुंशी और प्रेमचंद किया करते थे। पत्रिका के संपादक में नाम कन्हैयालाल और प्रेमचंद का एक साथ जाता था और कुछ इस तरह कि कन्हैयालाल मुंशी का नाम पहले लिखा जाता था और प्रेमचंद का बाद में , तो धीरे – धीरे कन्हैयालाल का मुंशी , प्रेमचंद के नाम के साथ जुड़ता गया और इस तरह प्रेमचंद से उनका नाम मुंशी प्रेमचंद भी हुआ।
प्रेमचंद का जीवन गरीबी और अभावों में ही गुजरा। फिर भी प्रेमचंद ने अपनी पढाई मेट्रिक तक पूरी की। उनका किताबों के प्रति रुझान स्कूल के समय ही पता चल गया था। न जाने कितनी किताबें प्रेमचंद ने किताबवाले की दुकान पर बैठ कर ख़तम कर दी थी। उनकी किताबों में आप गरीबी , स्त्र्यिों के प्रति समाज का रवैया , विधवा समस्या , को काफी अच्छे ढंग से देख सकते है। उनकी किताबों में गोदान सबसे ज्यादा मशहूर हुई है। उनकी बाकी किताबें भी बहुत अच्छी है।
जैसे मैंने उनकी कुछ किताबें जो पढ़ रखी है , वो है निर्मला , रूठी रानी , गबन , प्रतिज्ञा , गोदान। ये सब किताबों में प्रेमचंद ने समाज के किसी न किसी हिस्से को उठाया और उस पर बेहतरीन किताबें लिखी है। उपन्यास के साथ साथ प्रेमचंद बहुत सारी छोटी – छोटी कहानियाँ भी प्रचलित है , जैसे दो बैलों की कथा , कफ़न , पूस की रात। आप कभी समय निकाल कर प्रेमचंद की किताबों को जरूर पढ़ें।
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